Friday, February 22, 2013

डोर

कुछ उलझे हुए धागों का 
छोर ढूँढता हूँ 
सन्नाटा कितना गहन है 
कहीं शोर ढूँढता हूँ 
अब ना दिन चाहिए न रात 
थोडा भोर ढूँढता हूँ 
जो बिन बदल नाचे 
ऐसा कोई मोर ढूँढता हूँ 
इक बात जो हिल दे ज़मीरो को 
झकझोर ढूँढता हूँ 
नशे में भूल  मैं खुद को 
मदिरा सराबोर ढूँढता हूँ 
रास्ते की तलाश में, रास्ते पर 
खड़ा चारो ऒर ढूँढता हूँ 
कटी पतंग का छूटा हुआ 
वो डोर ढूँढता हूँ।
तुम नहीं हो, कहीं नहीं हो 
फिर भी ना जाने क्यों 
वोह ह्रदय कठोर ढूँढता हूँ। 

Tuesday, February 19, 2013

तुम हो कहीं



ये कैसी कोशिश में लगा है मन
अपनी परछाई पकड़ने चला है मन
जितना मैं तुम्हारे पास जाता हूँ
घडी दो घडी अपनी आस बढाता हूँ
ढूंढता हूँ , तुम मिल जाते हो 
तुमसे कुछ कहता हूँ ,
तुम समझ नहीं पाते हो
किस द्वन्द में रमा है मन
ये कैसी कोशिश में लगा है मन

कभी अपने को रोक लेता हूँ
कभी बिना रुके चल देता हूँ
कभी मुझे मिल जाती है पगडण्डी
तो कभी राह मोड़ लेता हूँ
वो  राह भी मुझे तुम तक पहुंचा देती है
ऐसा लगता है इस शहर की 
पगडण्डी और सड़के तुम तक ही जाती हैं 
ये किस राह चला है मन
ये कैसी कोशिश में लगा है मन

दो वक़्त मिल जाये तो तुम्हे पास बिठा लूं 
बिन कहे कुछ भी , सबकुछ बता दूं 
कहीं एक जादू की छड़ी मिल जाये
कुछ ऐसा जादू चला दूं
तुम्हारे मन को में आज में ला दूं
तुम्हे कल , आज और कल में अंतर बता दूं
एक ऐसा शीशा मिल जाये कहीं 
जिसमे तुम्हारा अक्स दिखा दूं
ये कैसी इच्छाओ के धुन्ध में खोया है मन
ये कैसी कोशिश में लगा है मन

दो वक़्त तुमने भी मुश्किलों के गुज़ारे होंगे 
वहां आंसूं के नज़ारे होंगे
दो तुक ज़िन्दगी का सिलसिला ही यही  है 
कौन जाने क्या गलत और क्या सही है
हमने भी देखे है, सबने देखे हैं 
समय पे किसका वश चला है
सूरज तभी उगा है जब पीछे दिन ढला है
ये मैं तुम्हे बताना चाहता हूँ 
ये कुछ पल की बात है दिखाना चाहता हूँ
ये क्या बताने और समझाने में रमा है मन 
ये कैसी कोशिश में लगा है मन .